डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कोरोनाकाल में सेंट्रल विस्टा एवेन्यू रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के निर्माण को रोकने की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिका में मांग की गई है कि कोरोना काल में इस तरह के निर्माण कार्य की वजह से वहां काम कर रहे मजदूरों में कोरोना फैलने का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाता है। ऐसे में अभी निर्माण कार्य पर रोक लगा देनी चाहिए। हालांकि केंद्र सरकार ने याचिका का मकसद निर्माण कार्य रुकवाना बताया है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने दलील पेश करते हुए कहा कि हमें यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर सेंट्रल विस्टा के लिए जो काम चल रहा है, यह एसेंशियल सर्विस के तहत कैसे आ गया? एक नागरिक क्या उम्मीद करता है? पारदर्शिता और ईमानदारी। लेकिन उन्हें मिलता क्या है? ये लोग इसे सेंट्रल विस्टा कह रहे हैं, लेकिन इसको आने वाले दिनों में "सेंट्रल विस्टा" की जगह मौत का केंद्रीय किला ना कहा जाने लगे। अब तो इस सेंट्रल विस्टा के आसपास फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की भी इजाजत नहीं है।
वहीं भारत सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता किसी भी सूरत में सेंट्रल विस्टा के काम पर रोक लगवाने की कोशिश में पिछले काफी वक्त से लगे हुए हैं। वहां मौजूद कर्मचारियों और कामगारों की दिक्कत का हवाला देकर एक बार फिर से कुछ उसी तरीके की कोशिश हो रही है। इनका मकसद वहां मौजूद मजदूरों से नहीं बल्कि किसी भी सूरत में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगवाने से हैं। मेहता ने कहा कि इस तरीके की याचिकाओं को तवज्जो नहीं देनी चाहिए, क्योंकि इनका मकसद कुछ और होता है।
बता दें कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के सामने भी रखा जा चुका है। मगर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात के मद्देनजर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था कि यह मामला पहले से ही दिल्ली हाईकोर्ट में है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नया संसद भवन, प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति के आवास के अलावा कई सरकारी इमारतें राजपथ और इंडिया गेट के आसपास बन रही हैं। कोविड-19 के इस बुरे दौर के बीच सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर विपक्षी दल भी हमलावर बने हुए हैं।
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