नई दिल्ली, 5 जुलाई (आईएएनएस)। अक्षय कुमार लक्ष्मी बम में एक ट्रांसजेंडर की भूमिका निभाते नजर आएंगे। सोनम कपूर की पिछले साल आई फिल्म एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, मनोज बाजपेयी की अलीगढ़ और पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान की कपूर एंड संस भी इसी मुद्दे पर आधारित थीं। बॉलीवुड की फिल्में समय-समय पर एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय की आवाज बनती रही हैं लेकिन क्या यह उनके लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व है?
इस मुद्दे पर फिल्म निर्माता ओनिर ने आईएएनएस से कहा, मुख्यधारा के सिनेमा में चीजें वास्तव में नहीं बदली हैं। फिल्मों में एलजीबीटीक्यू मुद्दों को निभाने वाले पात्रों को मैं नहीं मानता। कम्युनिटी में लोगों को देखने का एक सामान्य तरीका होना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, एलजीबीटीक्यूआई लोगों को खुद अपनी स्टोरी सुनानी चाहिए। वे सोचें कि कैसे उनकी कहानी कोई और कह रहा है, जो कि उन्हें खुद कहनी चाहिए?
हाल ही में हुई देश की वीएच1 वर्चुअल प्राइड परेड में हिस्सा लेने वाले आर्टिस्ट जीशान अली को लगता है कि अभी हमने एलजीबीटीक्यूए मुद्दे की सिर्फ सतह को कुरेदा है। 10-15 साल पहले से अब की तुलना करें तो कुछ बदलाव आया है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। मुख्यधारा की बहुत कम फिल्में जैसे अलीगढ़ ने इस समुदाय को कलंक माने जाने की बात को गहराई से उजागर किया है और मैं उनकी कहानी कहने की ईमानदारी की सराहना करता हूं।
एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले हरीश अय्यर को लगता है कि एलजीबीटीक्यूआई समुदाय से संबंधित बहुत कम फिल्में हैं।
वह कहते हैं, हमारी आबादी लगभग सात से 10 फीसदी है, लेकिन कुल फिल्मों की दो या तीन फीसदी भी हमारे मुद्दों पर नहीं बनती हैं। सच्चाई यह है कि हमें और अधिक प्रतिनिधित्व की जरूरत है।
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